बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 गृह विज्ञान बीए सेमेस्टर-1 गृह विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 गृहविज्ञान
प्रश्न- मैक्रो एवं माइक्रो पोषण से आप क्या समझते हो तथा इनकी प्राप्ति स्रोत एवं कमी के प्रभाव क्या-क्या होते हैं?
उत्तर-
आहार जीवन की प्राथमिक आवश्यकता है। हम जो आहार लेते हैं उसका शरीर में पाचन किया जाता है। प्रत्येक जीवधारी भोजन ग्रहण करता है तथा पोषण प्रक्रिया द्वारा उसका शरीर में उपयोग करता है। भोजन में कई प्रकार के पोषक तत्व पाये जाते हैं। उनमें से कुछ शरीर के लिए बहुत आवश्यक होते हैं तथा कुछ की कम मात्रा में आवश्यकता पड़ती है।
ये पोषक तत्व हमारे शरीर के लिए अति आवश्यक होते हैं। हमारे भोजन में दो प्रकार के पोषक तत्व पाये जाते हैं जो निम्न हैं.
(1) मैक्रो न्यूट्रिशन (Macro Nutrition) - ये वो पोषक तत्व होते हैं जो हमारे लिए अधिक मात्रा में अति आवश्यक होते हैं। इन पोषक तत्वों में कार्बोज, प्रोटीन, वसा इत्यादि आते हैं। इनका वर्णन निम्न प्रकार है
(i) कार्बोहाइड्रेट- कार्बोज हमारे भोजन का मुख्य भाग है। एक साधारण व्यक्ति को भोजन में 55% से 65% तक ऊर्जा कार्बोज से ही मिलती है। कार्बोज युक्त पदार्थ वनस्पति जगत से प्राप्त होते हैं। कार्बोहाइड्रेट का निर्माण पेड़-पौधें में प्रकाश संश्लेषण विधि द्वारा होता है।
कार्बोज केवल मनुष्य तथा जानवरों को ही ऊर्जा नहीं देता बल्कि यह पेड़- पौधों को भी ऊर्जा देता है। कार्बोहाइड्रेट पेड़-पौधे के रस में शक्कर के रूप में घुले रहते हैं।
कार्बोज एक यौगिक है। इसकी आधारीय रचनात्मक इकाई शर्करा है जिसमें कार्बन, हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन तत्व पाये जाते हैं।
कार्बोज का वर्गीकरण तीन प्रकार से किया गया है
(1) मानोसैकेराइडस, (2) डाइसैकेराइडस, (3) पोलीसेकेराइडस।
साधारण शब्दों में हम कार्बोहाइड्रेट के रासायनिक संगठन को कहें तो इसमें हाइड्रोजन और ऑक्सीजन उसी अनुपात में होते हैं (2:1) जिस अनुपात में (H, O) 2: 1 में होते हैं।
कार्बोज की प्राप्ति के साधन सभी प्रकार के अनाज जैसे गेहूँ, चावल, बाजरा, मक्का, राई, जौ कुछ प्रकार की दालें, शक्कर, गुड, खाण्ड, बूरा, शहद, जेडवाली सब्जियाँ जैसे आलू, शकरकन्द, जिमीकन्द, अरबी, चुकन्दर, सूखे फलों, जैसे किशमिश, अंजीर, मुनक्का खजूर, सेब, नाशपाती, आम आदि कार्बोज प्राप्ति के उत्तम साधन हैं।
कार्बोहाइड्रेट की कमी से हानि
कार्बोहाइड्रेट के कार्यों से स्पष्ट है इसकी मात्रा कम होने पर व्यक्ति को पर्याप्त ऊर्जा नहीं मिल पाती है। अतः व्यक्ति थकावट व कमजोरी महसूस करता है। शरीर में आलस्य रहता है स्फूर्ति नहीं होती है। ऊर्जा की कमी शरीर में उपस्थित प्रोटीन से पूरी होने लगती है अर्थात् शरीर अन्दर ही अन्दर गलने लगता है।
(ii) प्रोटीन प्रोटीन शब्द ग्रीक भाषा के प्रोटीओ से लिया गया है जिसका अर्थ है पहले आने वाला। यह शब्द 1838 में एक प्रसिद्ध डच रसायनज्ञ मुल्डर ने प्रस्तावित किया था।
सभी जीवित पदार्थों, वनस्पति, जन्तु यहाँ तक कि अणुजीवों में भी प्रोटीन की उपस्थिति होती है। प्रोटीन की रचना कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन व सल्फर आदि से होती है तथा कुछ प्रोटीन आयरन व आयोडीन आदि भी रखते हैं।
प्रोटीन में नाइट्रोजन की उपस्थिति प्रोटीन को कार्बोहाइड्रेट व वसा से अलग रखती है। प्रोटीन में नाइट्रोजन की मात्रा 13 से 20% तक होती है। प्रोटीन की इकाई अमीनो एसिड कहलाती है।
शरीर में अत्यधिक मात्रा में उपस्थित तत्वों में से प्रोटीन एक महत्वपूर्ण तत्व है। अधिकता की दृष्टि से शरीर में जल के पश्चात् दूसरा महत्वपूर्ण तत्व प्रोटीन ही है। कुल शारीरिक प्रोटीन का 1/2 भाग मासपेशियों में, 1/5 भाग अस्थियों, उपास्थियों, दातों, व त्वचा में होता है।
कुछ प्रोटीन हमारे शरीर के लिए बहुत उपयोगी होते हैं। जैसे सोयाबीन, सूखे मेवे, मूंगफली, सेम आदि।
स्रोत के आधार पर प्रोटीन को दो भागों में बाँटा गया है-
(1) जन्तु जगत से प्राप्त प्रोटीन - अण्डे, दूध, मॉस, मछली का प्रोटीन उत्तम प्रोटीन है तथा शारीरिक वृद्धि तथा भरण-पोषण के लिए आवश्यक है।
(2) वनस्पति जगत से प्राप्त प्रोटीन इस प्रकार का प्रोटीन अनाज, दालों, मेवे, फल, सब्जी इत्यादि से प्राप्त होता है।
प्रोटीन की प्राप्ति के साधन - प्रोटीन जन्तु तथा वनस्पति दोनों साधनों से प्राप्त होता है। प्रोटीन का निर्माण प्रारम्भिक रूप में वनस्पति में ही होता है। वनस्पति, भूमि से नाइट्रोजन, जल हवा आदि लेकर प्रोटीन का निर्माण करती है तथा अपने बीजों में संग्रह करती है।
जन्तु इस वनस्पति प्रोटीन का उपयोग कर अपने शरीर के अनुरूप बना लेता है।
मनुष्य जन्तु एवं वनस्पति दोनों माध्यम से प्रोटीन का उपयोग करता है। जन्तु प्रोटीन हमारे शरीर के प्रोटीन अधिक समान होते हैं, अतः जन्तु प्रोटीन अधिक उपयोगी होती है
जैसे- मॉस, मछली, अण्डा, पक्षी, दूध, पनीर, खोआ आदि।
प्रोटीन की कमी के प्रभाव - प्रोटीन शारीरिक विकास व वृद्धि की दृष्टि से नितान्त उपयोगी तत्व है। इसकी कमी से शरीर अस्वस्थ रहता है, विकास की गति अवरूद्ध हो जाती है तथा शरीर शक्तिहीन होता चला जाता है।
प्रोटीन की कमी का प्रभाव 'प्रोटीन कैलोरी कुपोषण' के नाम से जाना जाता है। प्रोटीन ऊर्जा कुपोषण, प्रोटीन तथा ऊर्जा दोनों की कमी के कारण होता है।
प्रोटीन की कमी से बच्चों में मुख्य रूप से ये तीन रोग हो जाते हैं-
(1) क्वाशियोरकर, (2) सुखा रोग या मैरास्मस, (3) मैरास्मिक क्वाशियोकर
(iii) वसा - वसा चर्बीदार अम्ल व ग्लिसरीन का मिश्रण है। इसकी रचना भी उन्ही तीन रासायनिक तत्वों अर्थात् कार्बोज, हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन से होती है जिनसे कि कार्बोज की। किन्तु कार्बोज की अपेक्षा वसा में उनका अनुपात भिन्न होता है।
वसा में नाइट्रोजन तत्व नहीं होता परिणामस्वरूप वसा में कार्बोज की अपेक्षा संघनित ईधन अधिक होता है। यह कार्बोज की अपेक्षा 21.5 गुना अधिक शक्ति व गर्मी उत्पन्न करती है।
1 ग्राम वसा 9 कैलोरी देती है।
वसा चिकनाईयुक्त भोज्य पदार्थ है जोकि पानी में अधुनशील होते हैं।
वसा हमारे भोजन का महत्वपूर्ण भाग है। भारतीयों को 10-30% तक ऊर्जा इससे प्राप्त होती है।
वसा ऊर्जा का संघनित रूप है। 1 ग्रा. वसा से 9 कैलोरी ऊर्जा मिलती है जबकि कार्बोज एवं प्रोटीन की इतनी ही मात्रा से 4 कैलोरी ऊर्जा मिलती है। वसा शरीर के कोमल अंगों को सुरक्षा प्रदान करती है। शरीर के तापक्रम को नियमित करती है।
वसा प्राप्ति स्रोत तिलहन में वसीय तत्व पूरे दाने में बिखरा रहता है, परन्तु अनाज के दाने में उसके तत्व में ही 0.11 संग्रहीत रहता है।
प्राप्ति स्रोत- घी, ताजा घी, अखरोट, मक्खन, तिलहन एवं नट्स आदि।
वसा की कमी का प्रभाव- आहार में पर्याप्त मात्रा में वसा का सेवन नहीं करने से निम्नांकित प्रभाव दृष्टिगोचर होते हैं
(1) फ्रीनोडमी हो जाना,
(2) कोशिकाओं की कार्यक्षमता में कमी हो जाना (3) सामान्य वृद्धि रूक जाना,
(4) त्वचा का सुखा, खुरदरा एवं चमकहीन हो जाना।
(2) माइक्रो न्यूट्रिशन (Micro Nutrition)- ये वो पोषक तत्व होते हैं जिनकी हमें बहुत कम मात्रा में जरूरत होती है। विटामिन एवं खनिज लवण हमारे माइक्रो अर्थात् सूक्ष्म पोषक तत्व होते हैं।
(i) विटामिन- विटामिन जीवनसत्व की खोज 70वीं शताब्दी की खोज है। विटामिन शब्द कैशीमियर फंक द्वारा 1912 में दिया गया था। इनकी हमारे शरीर में कम ही मात्रा की आवश्यकता होती है परन्तु ये काफी महत्वपूर्ण होते हैं।
इस महत्वपूर्ण तत्व को, जिसके बिना स्वास्थ्य और जीवन असम्भव है और भोजन में जिसका होना नितान्त आवश्यक है उन्हें विटामिन, जीवनीय कण नाम प्रदान किया गया है। अभी तक 6 प्रकार के विटामिन खोजे गए हैं। इन विटामिन को ए, बी, सी, डी, ई और के द्वारा सम्बोधित किया जाता है।
विटातिन दो वर्गों में विभाजित किए जा सकते है
(1) जल में घुलनशील, (2) वसा में घुलनशील
विटामिन्स का वर्गीकरण | |||||
जल में घुलनशील | वसा में घुलनशील | ||||
B | C | A | D | E | K |
विटामिन प्राप्ति के स्रोत - यह निम्न है
(1) विटामिन B - शुष्क खमीर, साबुत अनाज, हाथ का कुटा चावल, चावल की भूसी, साबूत साधन दालें, थायामिन के सर्वोष्कृष्ट है।
(2) विटामिन C- ऑवला, अमरूद, सोयाबीन, नीबू नांरगी का रस, स्ट्राबेरी, पका आम, आमचूर, पका पपीता, टमाटर आदि।
(3) विटामिन A - मक्खन, अण्डे की जर्दी, ताजी सब्जी- गाजर सलाद, गोभी, लहसुन तथा हरे पत्ते शकों में केला।
(4) विटामिन D - विटामिन 'D' सूर्य की रोशनी तथा आहार से प्राप्त होता है। प्राणिज भोज्य पदार्थों में विशेषकर मछली के तेल में विटामिन D उपस्थित रहता है।
(5) विटामिन E - विटामिन E सभी भोज्य पदार्थों में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध रहता हैं। विटामिन E सभी प्रकार के अनाज, गेहूँ के अंकुर, हरी पत्तीदार तरकारियों, गुर्दे, यकृत, दूध, अण्डो आदि में अस्थित होता है।
(6) विटामिन K- हरी पत्तेदार सब्जियाँ, इस विटामिन की प्राप्ति के उत्कृष्ट स्रोत हैं। अनाजों, दालों अण्डा, दूध, मांस तथा मछली में यह प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
कमी से प्रभाव
विटामिन B - बेरी-बेरी - नामक रोग
विटामिन C - स्कर्वी नामक रोग
विटामिन A - फ्राइनोडर्मा, प्रजनन शक्ति क्षीण होना, रतौंधी, बीटाट्स स्पॉट्स आदि।
विटामिन D- रिकेट्ज, टिटैर्नी, दातों का सड़ना, अस्थि मृदुलता, ऑस्टोपोरोसिस आदि।
विटामिन E - प्रजनन क्षमता में कमी, इरिथोसाइट हीमोलाइसिस।
विटामिन K - रक्त में प्रोथौम्बिन की मात्रा कम होना, पित्त रस कम बनना जिससे पीलिया हो जाता है।
(ii) खनिज लवण - हमारे शरीर के कुल भार का 96% भार प्रोटीन, कार्बोज, वसा तथा जल के कारण होता है शेष 4% खनिज लवणों के कारण होता है। मानव शरीर में कुल 24 खनिज लवणों की आवश्यकता होती है। ये खनिज लवण हमें भोजन द्वारा ही प्राप्त होते हैं। हमारे शरीर को अकार्बनिक तत्व खनिज लवण से प्राप्त होते हैं।
हमारे शरीर में लगभग 24% खनिज लवण विद्यमान रहते हैं जो या तो वे स्वतन्त्र रूप से शरीर में उपस्थिति रहते हैं अथवा कार्बनिक पदार्थों के साथ साथ संयुक्त रूप में रहते हैं।
खनिज लवण हमारे शरीर में मुख्य रूप से तीन स्वतन्त्र रूप में विद्यमान रहते हैं।
(1) खनिज लवण स्वतंन्त्र रूप में, (2) खनिज यौगिक के रूप में, (3) कार्बनिक यौगिक के रूप में।
खनिज लवण के प्रकार शरीर में उपस्थित 4% खनिज लवण की मात्रा में से 3/4 मात्रा कैल्शियम तथा फॉस्फोरस की होती है जबकि शेष 1/4 मात्रा अन्य खनिज लवणों की होती है। इन 24 खनिज लवणों को शरीर में आवश्यकताअनुसार बाँटा गया है
(1) मेजर खनिज तत्व अर्थात् वे खनिज लवण जिनकी शरीर में अधिक मात्रा होती है। ये खनिज तत्व 7 हैं कैल्शियम, फॉस्फोरस पोटैशियम, सल्फर, सोडियम, क्लोरीन, मैग्नीशियम।
(2) ट्रेस खनिज तत्व ये वे खनिज तत्व हैं जिनकी शरीर को अत्यन्त आवश्यकता होती है। ये शरीर में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं पर इनकी शरीर में मात्रा बहुत कम होती है।
इसके अन्तर्गत 4 खनिज तत्व आते हैं-
लोहा, तांबा, आयोडीन, मैगनीज।
प्राप्ति स्रोत लवण भिन्न प्रकार के भोज्य पदार्थ में भिन्न-भिन्न मात्रा में अनुपात में विद्यमान रहते हैं। जैसे- दूध में कैल्शियम, गेहूँ में ज्वार, हरी पत्तेदार सब्जियों में लौह लवण, आयोडीन युक्त नमक में ओयोडीन तथा सेब मे लोहा, नमक से सोडियम की प्राप्ति तथा अण्डे, मांस, मछली से भी सोडियम की प्राप्ति होती है।
इन विभिन्न भोज्य पदार्थों से खनिज लवणों की प्राप्ति हो पाती है। अतः हमें सभी प्रकार क सब्जियाँ, तथा फलों का आहार में सेवन करना चाहिए।
कमी के प्रभाव - विभिन्न प्रकार के खनिज लवण की कमी से विभिन्न प्रकार के रोग हो सकते हैं- जैसे कैल्शियम की कमी से अस्थियों का निर्माण नहीं होता ठीक प्रकार से तथा दातों का निर्माण नहीं होता एवं लोहे की कमी से हीमोग्लोबिन की कमी, आयोडीन की कमी से घेंघा नामक रोग तथा शरीर में सोडियम की कमी से "हाइपोनेट्रेमिया" हो जाता है तथा ताँबा की कमी से रक्तअलपता, जिंक की कमी से घाव देरी से भरता है, त्वचा में घाव हो जाता है।
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- प्रश्न- 'शरीर निर्माणक' पौष्टिक तत्व कौन-कौन से हैं? इनके प्राप्ति के स्रोत क्या हैं?
- प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट का वर्गीकरण कीजिए एवं उनके कार्य बताइये।
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- प्रश्न- वसा की दैनिक आवश्यकता बताइए तथा इसकी कमी तथा अधिकता से होने वाली हानियों को बताइए।
- प्रश्न- विटामिन से क्या अभिप्राय है? विटामिन का सामान्य वर्गीकरण देते हुए प्रत्येक का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वसा में घुलनशील विटामिन क्या होते हैं? आहार में विटामिन 'ए' कार्य, स्रोत तथा कमी से होने वाले रोगों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- खनिज तत्व क्या होते हैं? विभिन्न प्रकार के आवश्यक खनिज तत्वों के कार्यों तथा प्रभावों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- प्रोटीन हीनता के कारण बताइए।
- प्रश्न- क्वाशियोरकर तथा मेरेस्मस के लक्षण बताइए।
- प्रश्न- प्रोटीन के कार्यों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भोजन में अनाज के साथ दाल को सम्मिलित करने से प्रोटीन का पोषक मूल्य बढ़ जाता है।-कारण बताइये।
- प्रश्न- शरीर में प्रोटीन की आवश्यकता और कार्य लिखिए।
- प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट्स के स्रोत बताइये।
- प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट्स का वर्गीकरण कीजिए (केवल चार्ट द्वारा)।
- प्रश्न- यौगिक लिपिड के बारे में अतिसंक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- आवश्यक वसीय अम्लों के बारे में बताइए।
- प्रश्न- किन्हीं दो वसा में घुलनशील विटामिन्स के रासायनिक नाम बताइये।
- प्रश्न बेरी-बेरी रोग का कारण, लक्षण एवं उपचार बताइये।
- प्रश्न- विटामिन (K) के के कार्य एवं प्राप्ति के साधन बताइये।
- प्रश्न- विटामिन K की कमी से होने वाले रोगों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- एनीमिया के प्रकारों को बताइए।
- प्रश्न- आयोडीन के बारे में अति संक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- आयोडीन के कार्य अति संक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- आयोडीन की कमी से होने वाला रोग घेंघा के बारे में बताइए।
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- प्रश्न- लौह तत्व के कोई चार स्रोत बताइये।
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- प्रश्न- गर्भकालीन विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक कौन से है। विस्तार में समझाइए |
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- प्रश्न- "गर्भकालीन टॉक्सीमिया" को समझाइए।
- प्रश्न- विभिन्न प्रसव प्रक्रियाएँ कौन-सी हैं? किसी एक का वर्णन कीएिज।
- प्रश्न- आर. एच. तत्व को समझाइये।
- प्रश्न- विकासोचित कार्य का अर्थ बताइये। संक्षिप्त में 0-2 वर्ष के बच्चों के विकासोचित कार्य के बारे में बताइये।
- प्रश्न- नवजात शिशु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो।
- प्रश्न- नवजात शिशु की पूर्व अन्तर्क्रिया और संवेदी अनुक्रियाओं का वर्णन कीजिए। वह अपने वाह्य वातावरण से अनुकूलन कैसे स्थापित करता है? समझाइए।
- प्रश्न- क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते है? क्रियात्मक विकास का महत्व बताइये |
- प्रश्न- शैशवावस्था तथा स्कूल पूर्व बालकों के शारीरिक एवं क्रियात्मक विकास से आपक्या समझते हैं?
- प्रश्न- शैशवावस्था एवं स्कूल पूर्व बालकों के सामाजिक विकास से आप क्यसमझते हैं?
- प्रश्न- शैशवावस्थ एवं स्कूल पूर्व बालकों के संवेगात्मक विकास के सन्दर्भ में अध्ययन प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- शैशवावस्था क्या है?
- प्रश्न- शैशवावस्था में संवेगात्मक विकास क्या है?
- प्रश्न- शैशवावस्था की विशेषताएं क्या हैं?
- प्रश्न- शैशवावस्था में शिशु की शिक्षा के स्वरूप पर टिप्पणी लिखो।
- प्रश्न- शिशुकाल में शारीरिक विकास किस प्रकार होता है।
- प्रश्न- शैशवावस्था में मानसिक विकास कैसे होता है?
- प्रश्न- शैशवावस्था में गत्यात्मक विकास क्या है?
- प्रश्न- 1-2 वर्ष के बालकों के संज्ञानात्मक विकास के बारे में लिखिए।
- प्रश्न- बालक के भाषा विकास पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- संवेग क्या है? बालकों के संवेगों का महत्व बताइये।
- प्रश्न- बालकों के संवेगों की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- बालकों के संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं समझाइये |
- प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास से आप क्या समझते है। पियाजे के संज्ञानात्मक विकासात्मक सिद्धान्त को समझाइये।
- प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- दो से छ: वर्ष के बच्चों का शारीरिक व माँसपेशियों का विकास किस प्रकार होता है? समझाइये।
- प्रश्न- व्यक्तित्व विकास से आपका क्या तात्पर्य है? बच्चे के व्यक्तित्व विकास को प्रभावित करने वाले कारकों को समझाइए।
- प्रश्न- भाषा पूर्व अभिव्यक्ति के प्रकार बताइये।
- प्रश्न- बाल्यावस्था क्या है?
- प्रश्न- बाल्यावस्था की विशेषताएं बताइयें।
- प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में खेलों के प्रकार बताइए।
- प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में बच्चे अपने क्रोध का प्रदर्शन किस प्रकार करते हैं?